हिमालय से मिलने वाला शिलाजीत: ठंडी तासीर या गर्म? डॉ. नताशा शर्मा की राय

हिमालय से मिलने वाला शिलाजीत: ठंडी तासीर या गर्म? डॉ. नताशा शर्मा की राय

By Dr Natasha Sharma | April 11, 2025

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    प्राकृतिक औषधियों में शिलाजीत का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। खासतौर पर हिमालय की ऊंची पहाड़ियों में मिलने वाला शिलाजीत अत्यंत शुद्ध और शक्तिशाली माना जाता है। यह आयुर्वेद में एक प्राचीन रसायन (Rejuvenator) के रूप में वर्णित है, जो शरीर की ऊर्जा, प्रतिरोधक क्षमता और मानसिक स्पष्टता को बढ़ाने में सहायक होता है।

    लेकिन अक्सर एक सवाल लोगों के मन में आता है – क्या शिलाजीत की तासीर ठंडी होती है या गर्म? इसका उत्तर जानना न सिर्फ इसके उपयोग से पहले जरूरी है, बल्कि इसके प्रभाव को समझने में भी मदद करता है।

    इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि हिमालयी शिलाजीत की तासीर क्या होती है, यह शरीर पर कैसे असर करता है, और इस विषय पर आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. नताशा शर्मा की राय क्या कहती है।

    शिलाजीत क्या है ? / What Is Shilajit?

    शिलाजीत एक गाढ़ा, तार जैसा, काले या भूरे रंग का पदार्थ होता है, जो हिमालय, गिलगित, तिब्बत और काराकोरम जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में चट्टानों की दरारों से निकलता है। यह हजारों सालों से जैविक और खनिज तत्वों के अपघटन से बना होता है और इसमें फुलविक एसिड, ह्यूमिक एसिड, और 80 से अधिक खनिज तत्व पाए जाते हैं।

    शिलाजीत की तासीर: ठंडी या गर्म ? / Effect OF Shilajit: Cold or Hot?

    आयुर्वेद के अनुसार, शिलाजीत की तासीर गर्म (उष्ण) होती है। इसका मतलब यह है कि यह शरीर में उष्मा (गर्मी) उत्पन्न करता है, और वात एवं कफ दोष को संतुलित करता है, जबकि पित्त दोष को बढ़ा सकता है यदि इसका संतुलन न रखा जाए।

    डॉ. नताशा शर्मा, जो एक आयुर्वेद विशेषज्ञ और स्किन-हॉरमोन बैलेंस कंसल्टेंट हैं, कहती हैं:

    “शिलाजीत एक शक्तिवर्धक रसायन है जिसकी तासीर उष्ण होती है। यह शरीर की ऊर्जा को बढ़ाने, मेटाबॉलिज्म को तेज करने और टेस्टोस्टेरोन के स्तर को संतुलित करने में मदद करता है। लेकिन इसका सेवन मौसम, व्यक्ति की प्रकृति (प्राकृति), और शरीर के दोषों को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए।”

    शिलाजीत का प्रभाव शरीर पर

    1. ऊर्जा और स्टैमिना में वृद्धि

       यह शरीर को पुनर्जीवित करता है और थकावट दूर करता है।

    2. हॉर्मोन बैलेंस में सहायक

       पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन और महिलाओं में हार्मोनल संतुलन को सुधारने में मददगार।

    3. प्रतिरोधक क्षमता में सुधार

       रोग प्रतिरोधक तंत्र को मजबूत करता है।

    4. मस्तिष्क के कार्य में वृद्धि

       याददाश्त, फोकस और मानसिक स्पष्टता को बढ़ाता है।

    5. डिटॉक्सिफिकेशन

      फुलविक एसिड के कारण शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर निकालता है।

    क्या गर्म तासीर नुकसानदायक हो सकती है?

    डॉ. नताशा शर्मा कहती हैं:

    “यदि किसी व्यक्ति की प्रकृति पहले से ही पित्तप्रधान है, तो शिलाजीत के सेवन से शरीर में अत्यधिक गर्मी बढ़ सकती है। इससे जलन, एसिडिटी, त्वचा पर फुंसियां या अनिद्रा जैसी समस्याएं हो सकती हैं।”

    इसलिए यह ज़रूरी है कि शिलाजीत का सेवन किसी प्रशिक्षित आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह के अनुसार किया जाए।

    शिलाजीत का सही उपयोग कैसे करें?

    1. मात्रा:

       सामान्यतः 300 से 500 मिलीग्राम रोज़ाना पर्याप्त होता है। लेकिन यह व्यक्ति की उम्र, स्वास्थ्य और जरूरत के अनुसार बदल सकता है।

    2. समय:

       इसे सुबह खाली पेट या भोजन के बाद गर्म दूध या गुनगुने पानी के साथ लिया जा सकता है।

    3. गर्मियों में सावधानी:

       गर्म तासीर के कारण शिलाजीत को गर्मियों में लेने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लें। इसके साथ गुलकंद, दूध, या शीतल पेय (जैसे सौंफ का पानी) लेने से गर्मी का असर कम किया जा सकता है।

    4. अवधि:

      शिलाजीत को लगातार 2–3 महीने लेने के बाद कुछ हफ्तों का ब्रेक लेना चाहिए।

    किन लोगों को नहीं लेना चाहिए?

    • जो लोग पित्त प्रकृति के हैं

    • जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर, गैस्ट्रिक अल्सर या त्वचा की एलर्जी होती है

    • गर्भवती महिलाएं और बच्चे

    • यदि आप किसी दवा का सेवन कर रहे हैं, तो डॉक्टर से सलाह अवश्य लें

    निष्कर्ष

    हिमालयी शिलाजीत एक अद्भुत प्राकृतिक रसायन है, जिसकी तासीर गर्म होती है और जो शरीर को ऊर्जा, शक्ति और संतुलन प्रदान करता है। लेकिन इसकी गर्म प्रकृति के कारण यह सभी के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता, खासकर गर्मियों में या पित्त प्रकृति वालों के लिए।

    डॉ. नताशा शर्मा का स्पष्ट मानना है कि यदि शिलाजीत का उपयोग सही मात्रा और सही माध्यम से किया जाए, तो यह जीवनशैली को बेहतर बना सकता है। लेकिन अंधाधुंध सेवन से नुकसान भी हो सकता है।

    तो अगली बार जब आप शिलाजीत लेने का सोचें, तो उसकी तासीर को समझें, शरीर की प्रकृति को जानें और किसी योग्य आयुर्वेद विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।